Lekhika Ranchi

Add To collaction

लोककथा संग्रह 2

लोककथ़ाएँ


सेवा और भक्ति नेपाली लोक-कथा

राजा सुशर्मा अपने दरबारियों के हर प्रश्न का जवाब देते थे ।

एक बार एक व्यक्ति ने दरबार में उनसे पूछा, 'राजन, मनुष्य के जीवन में भक्ति और सेवा में किसका महत्व ज्यादा है ?' उस समय वह उस प्रश्न का जवाब नहीं दे पाए लेकिन वह इस बारे में लगातार सोचते रहे । कुछ समय बाद राजा शिकार के लिए जंगल की ओर निकले लेकिन उन्होने किसी को साथ में नहीं लिया । घने जंगल में वह रास्ता भटक गए । शाम हो गयी । प्यास से उनका बुरा हाल ले गया था ।

काफी देर भटकने के बाद उन्हें एक कुटिया दिखाई पड़ी । वह किसी संत की कुटिया थी ।
राजा किसी तरह कुटिया तक पहुंचे और 'पानी - पानी' कहते हुए मूर्छित हो गए । कुटिया में संत समाधि में लीन थे । राजा के शब्द संत के कानों में गये,

"पानी - पानी" की पुकार सुनने से संत की समाधि भंग हो गयी । वह अपना आसन छोड़ राजा के पास गए और उन्हें पानी पिलाया । पानी पीकर राजा की चेतना लौट आयी ।

राजा पिलाकर को जब पता चला कि संत समाधिस्थ थे तो उन्होने कहा 'मुनिवर मेरी वजह से आपके ध्यान में खलल पड़ा । मैं दोषी हूं । मुझे प्रायश्चित करना होगा ।' संत ने कहा -'राजन आप दोषी नहीं हैं इसलिए प्रायश्चित करने का प्रश्न ही नहीं है । प्यासा पानी मांगता है और प्यास बुझाने वाला पानी देता है । आपने अपना कर्म किया है और मैंने अपना । यदि आप पानी की पुकार नहीं करते तो आपका जीवन खतरे में पड़ जाता और यदि मैं समाधि छेड़कर आपको पानी नहीं पिलाता, तब भी आपका जीवन खतरे में पड़ता । आपको पानी पिलाकर जो संतुष्टि मिल रही, वह कभी समाधि की अवस्था में भी नहीं मिलती, भक्ति और सेवा दोनों ही मोक्ष के रास्ते हैं, लेकिन यदि आप आज प्यासे रह जाते तो मेरी अब तक की सारी साधना व्यर्थ हो जाती ।'
राजा को उत्तर मिल गया कि सेवा का महत्त्व भक्ति से अधिक है ।

  *****
साभारः लोककथाओं से।

   0
0 Comments